खुशबू मेरी मिट्टी की

गंगा जितनी पवित्र  हैं वो ,

हमारी माँ कहलाती हैं जो,

जरूरत नहीं उसे किसी शुद्धि की,

वो खुशबू मेरी मिट्टी  की,


रहने को दिया उसने स्ठान,

पेट भरने को करती वो अन्न प्रदान,

अपनापन जिसकी हवाओ में बहा करता,

मैं अक्सर उस एहसास को याद करता,

मेरे बाबा ने जिस भूमि पर मेहनत की,

वो खुशबू मेरी मिट्टी की, 

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