मेरे आँखों के तारे

आँखों का तारा थे जो, बुढ़ापे का सहारा थे जो,

आज मुँह मोड़  लिया हमसे, निकल दिया उन्होंने घर से,

जिनको दिया हमने इतना प्यार, रखा जिनके भविष्य  को बरक़रार,

बेच दिया उन्होंने हमारा घर-बार, बनकर रहगये उनके जीवन का भार,

सहारा अब होगा किसका, हम पर पहाड़ टुटा हैं दुखो का,

रोता  हूँ अपना हाल देख कर, अपने बच्चों का ऐसा प्यार देखकर,

समझते हैं हमें एक सीढ़ी, जिनपर चलेगी उनकी सारी पीढ़ी,

मूड़ कर न देखा उन सीढ़ियों को, दुःख होगा बीती पीढ़ियों को,

आज लेनी पड़ेगी वृद्धाश्रम में शरण, जब तक न हो जाता जीवन का मरण,

आँखों में एक ख़ुशी हैं, मेरे बच्चों पर अब कोई बोझ नहीं हैं, 







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