कविता

मैं एक कवी हूँ और कविता मेरा कर्म हैं,
यही मेरा जीवन हैं यही मेरा धर्म हैं,
अपने विचारों के तारो से मैं राग बुना करता हूँ ,
शब्दो के इस में अपना भाव चुना करता हूँ,
मैं एक कवी हूँ और कविता मेरा कर्म हैं,
यही मेरा जीवन हैं यही मेरा धर्म हैं,




मेरे लिए जीवन ही कविता का स्वरूप हैं,
जिसमे कही छाँव हैं, कही धुप हैं,
उस स्वरूप का मैं पूजन किया करता हूँ,
इसमें परिश्रम का मैं  राग भरा करता हूँ,
कविता की मधुर सरिता में रोज बहा करता हूँ,
इस संसार का में गुणगान किया करता हूँ,
यही मेरी पहचान हैं, यही मेरा करम हैं,
मैं एक कवी हूँ और कविता मेरा धर्म हैं,



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