मेरे अतीत के पन्ने

बीते यादें आई मेरा आत्मबोध करने,
आज यूँ ही पलट गए मेरे अतीत के पन्ने ,

निस्वार्थ भाव सा कोमल, निश्छल था मन मेरा,
बचपन की मासूमियत ने डाला था दिल में डेरा,
दुसरो के दुःख में मैं खुद रोया करता था,
दोस्तों के  लिए घर में खिलौने सँजोया करता था,
मिट्टी से खेला करते और मिट्टी पर ही सो जाते,
जाते नहीं थे घर जबतक बाबुजी न आते,

उन ऊँची इमारतों में अब मेरी मिट्टी कहीं खो गई हैं,
जिम्मेदारियों के तले दोस्ती भी खो गई हैं,
इस शोर-गुल में बाबुजी की डाट न सुनाई करती,
मेरे अभिमान के नीचे अब इंसानियत है दबती,
न अब वो इंसानियत हैं, न है निस्वार्थ भावना, 
मेरी ईर्ष्या खुद न चाहती उस मासूमियत को थामना,

क्या से क्या हो गए, उस खाली तिजोरी को भरने,
आज यूँ ही पलट गए मेरे अतीत के पन्ने ,

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