मैं हूँ मनुष्य








मैं हूँ मनुष्य, मैं हूँ अभिमानी,
मैने हमेशा की मनमानी ,

भगवन ने दी मुझे बुद्धि  ताकि मैं खुद का स्वार्थ साधू,
अपने स्वार्थ के लिए मैं सबको बाँधू,
बाँट दू में सबको बेमतलब के आधार पे,
भर दूँ मैं द्वेष सबके विचार में,
काट दिए पेड़, मार दिए जीव,
रखी फिर उसपर मैने घमंड की नींव,
नफरत भरकर सबमे खत्म की इंसानियत,
जाती, धर्म, रंग के आधार पर बदल दी सबकी नियत,
प्रदूषण से धरती को कलंकित किया,
चारो तरफ ज़हर भर दिया,
फिर भी मैं न झुका, चाहे पहुंचे मुझे हानि,
मैं हूँ मनुष्य, मैं हूँ अभिमानी,

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