बह चली आज यूँ ही मेरी विचार धारा,

बह चली आज यूँ ही मेरी विचार धारा,
जिसमे दुनिया का मतलबी स्वरूप हारा,

मेरे विचारों में सौन्दर्य की गहन छवि हैं,
जिसमें मेरी प्रिय प्रकृति स्वयं में कवि हैं ,
नदियाँ के बहते पानी ने स्वरों का जाल बुना हैं,
इसमें गीत भरने के लिए मैंने पवन को चुना हैं,
चिड़ियों की चह-चाहट इसमें मधुर संगीत भरती ,
टहनियों की आवाज़ बांसुरी का काम करती,
बह चली आज यूँ ही मेरी विचार धारा,
जिसमे दुनिया का मतलबी स्वरूप हारा,

स्वपन टुटा और वास्तविकता में प्रवेश हुआ,
कुछ समय पहले भ्रम नें था मुझको छुआ,
काश वो स्वपन न टूटता मेरा,
अब चारो और लागे हैं अँधेरा,
वास्तविकता में, मैं इस दुनिया से हारा,
बह चली थी आज यूँ ही मेरी विचार धारा,



Comments

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